दरअसल मैं कोई एक आदमी नहीं हूँ,
मेरे बदलाव का गवाह ज़र्रा ज़र्रा है,
और मैं भी उन्ही ज़र्रे में से हूँ,
जो टुकड़ों में अस्तित्व को धारण करता है,
जिसे मैं का भ्रम भी है और जो ब्रह्मवाण है।
ये जो मेरा मन है ना जाने कितने मैं समेटता है?
कितने मन को टटोलता है?
पहचान तो बस एक मैं धारण किये हुए है,
ना जाने कितने पीछे रह जाता है?
दोष मत देना कि मैं ऐसा आदमी हूँ, वैसा आदमी हूँ,
दरअसल मैं कोई एक आदमी नहीं हूँ...
हर बेनाम को नाम देना बस मेरी आदत सी हो गयी है,
जो समझ में ना आये उसे पहचान देना ज़रूरत सी बन गयी है,
मैं ख़ुद से अज़नबी हूँ, और ख़ुद में अज़नबी हूँ,
दरअसल मैं कोई एक आदमी नहीं हूँ...
मेरे बदलाव का गवाह ज़र्रा ज़र्रा है,
और मैं भी उन्ही ज़र्रे में से हूँ,
जो टुकड़ों में अस्तित्व को धारण करता है,
जिसे मैं का भ्रम भी है और जो ब्रह्मवाण है।
ये जो मेरा मन है ना जाने कितने मैं समेटता है?
कितने मन को टटोलता है?
पहचान तो बस एक मैं धारण किये हुए है,
ना जाने कितने पीछे रह जाता है?
दोष मत देना कि मैं ऐसा आदमी हूँ, वैसा आदमी हूँ,
दरअसल मैं कोई एक आदमी नहीं हूँ...
हर बेनाम को नाम देना बस मेरी आदत सी हो गयी है,
जो समझ में ना आये उसे पहचान देना ज़रूरत सी बन गयी है,
मैं ख़ुद से अज़नबी हूँ, और ख़ुद में अज़नबी हूँ,
दरअसल मैं कोई एक आदमी नहीं हूँ...
Comments
Post a Comment