कुछ जज़्बात से बात निकलेगी और बातों में बात फैलेगी, जबकि कहने को कुछ भी नहीं है,
पर बातों के लिये कोई बात हो ये ज़रूरी तो नहीं।
इतने ख़ाली बैठे हैं समय का तकिया सर से टेके,
भला ये भी तो एक बात है,
बात मुद्दे की ही हो ये ज़रूरी तो नहीं।
मुद्दे नहीं मिल रहे हैं तो वे बातों की साईकल चला रहे हैं,
कहते हैं, मुद्दे मिल ही जाए ये ज़रूरी तो नहीं।
यहाँ हर कोई बोल रहा है,
मालूम होता है, सुन तो कोई भी नहीं रहा है,
पर बात सुनाने को ही किया जाये ये ज़रूरी तो नहीं।
ठहर जाओ, देखो, हर समय-हर जगह बातें हो रही है,
अब तुम भी बोलोगे ये ज़रूरी तो नहीं।
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