तेरा इश्क़ कागज़ का फूल तेरा वस्ल हवा में बिखरी धुंध,
ऐ दोस्त ज़रा क्षुधा से जलते कलेजे को निहार,
शायद तुझे इश्क़ की भाषा पे गौरफ़रमाइश की गुजाइंश हो।
तेरे परवाह में ये कैसी बेपरवाही है?
जबकि तेरा प्रेम उमड़ता है, बहता है साइबर संसार में,
मानो वर्च्यूल संकेत हो।
जिसके हक़ में चंद शब्द तो मुनासिब होते हैं,
पर उससे घुमड़ता धुँआ रौशनाई को बादल के पार ले उड़ता है।
बता कि तूझे इश्क़ हुआ है या इश्क़ का कलमा पढ़ा है।
इससे बेहतर तू अनपढ़ हो जा गर तुम्हें इश्क़ भी सिखाना पड़ जाए।
सिखाया हुआ इश्क़ है तभी ज़ुबान पे अटक गया है,
वरना मजाल कि तुम्हें इश्क़ हुआ हो और तेरी दृष्टि धुँधली हो जाए।
अक़्सर सुना है इश्क़ अन्धा होता है,
शायद ग़लत सुना है।
जिसे तुम इश्क़ समझते रहे वो अन्धा ही था।
और जब तुम्हें इश्क़ हो गया तत्क्षण दृष्टि मिल गयी।
जिसे इश्क़ की तलब है उसे इश्क़ नहीं होता,
जो बेतलब है वो तुलसी, सुर, और मीरा हो जाया करता है।
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