कभी सोच है, विचार है
कल्पनाओं का संसार है
ना बनता है ना बिगड़ता है
आधा-अधूरा ही रहता है
तिनकों सा बहाव है
गिरगिटिया स्वाभाव है
बनते-बिगड़ते ख़्वाब है
हवाओं का बयार है
छिलकों में चाँद है
टूटता सब्रों का बाँध है
बेला में शाम है
बेसुधी का जाम है
आकार भी है, बेआकार भी है
आधार भी है, निराधार भी है
वो जीवन भी है, इंतक़ाल भी है
ठहराव भी है, सैलाब भी है
जो कोरा है, वही सम्पूर्ण है!
कल्पनाओं का संसार है
ना बनता है ना बिगड़ता है
आधा-अधूरा ही रहता है
तिनकों सा बहाव है
गिरगिटिया स्वाभाव है
बनते-बिगड़ते ख़्वाब है
हवाओं का बयार है
छिलकों में चाँद है
टूटता सब्रों का बाँध है
बेला में शाम है
बेसुधी का जाम है
आकार भी है, बेआकार भी है
आधार भी है, निराधार भी है
वो जीवन भी है, इंतक़ाल भी है
ठहराव भी है, सैलाब भी है
जो कोरा है, वही सम्पूर्ण है!
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