मांगने की ज़िद छोड़ क्यों नहीं देते?
मांगने से कुछ नहीं मिलता।
तलाश की तलब में दौड़ते रह जाओगे,
तेरे सामने से पूरा जीवन निकल जायेगा।
बुद्ध के पास वो क्या न था जिसकी तलाश में निकले,
तलाश जारी रही पर क्या नसीब हुआ?
सिवाय रुग्णता और अभिशाप के।
जिस दिन तलाश समाप्त हो गयी,
जीवन मिल गया।
और क्या जरूरी हो सकता है जीवन के आगे?
और क्या हासिल हो सकता है जबकि तुम जीवन हो?
मांगने की ज़िद छोड़ क्यों नहीं देते,
मांगने से कुछ नहीं मिलता।
दूसरों की नकल में ख़ुद को कही खो आये,
अपने विचार, अपनी समझ सब कुछ धो आये,
दूसरों के समझ का क़ैदी भला अपना क्या हासिल कर लेगा?
भीड़ की आकांक्षाओं को बस अपने सर पे ओढ़ लेगा।
इस डरने की आदत को दफ़न क्यों ना कर आते?
डरने से 'ख़ुद' नहीं मिलता।
मांगने की ज़िद छोड़ क्यों नहीं देते?
मांगने से कुछ नहीं मिलता।
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