कितनी बार सोचता था कि मैं कौन हूँ?
पर हर बार सवाल ही ज़िन्दा रह जाता था।
अब तो मालूम होता है कि ये सवाल भी कहीं भूल आया हूँ।
सवालों के हमसफ़र जो थे तो जानने की आकांक्षा तो ज़िन्दा थी।
अब तो सवाल ही गुज़र गया है तो किस उत्तर की तलाश में निकलूँ?
भागने-दौड़ने की सूरत को अगर ज़िन्दा कहते तो आज ऊंची सीढ़ी तय करने वाला व्यक्ति खुशी के महल में तैरता।
मगर अफ़सोस एक धरती मिली थी सहारे के लिए वो भी बाज़ार में बेदाम हो गयी।
निकला था कभी गाँव शहर में आशियाँ बनाने के लिये,
आज गाँव की मिट्टी से भी शहरों की बू आती है।
जाने पहचाने रास्तों से नई मंज़िल तय नहीं होती,
जीवन को आदतन ढ़ोने वाले अनजाने सड़क पे सिहर जाते हैं।
बात गर ख़ुद से बंद हो गयी है तो किसी और से बात का क्या वजूद?
संवाद शब्दों से नहीं विचारों से होती है।
पर हर बार सवाल ही ज़िन्दा रह जाता था।
अब तो मालूम होता है कि ये सवाल भी कहीं भूल आया हूँ।
सवालों के हमसफ़र जो थे तो जानने की आकांक्षा तो ज़िन्दा थी।
अब तो सवाल ही गुज़र गया है तो किस उत्तर की तलाश में निकलूँ?
भागने-दौड़ने की सूरत को अगर ज़िन्दा कहते तो आज ऊंची सीढ़ी तय करने वाला व्यक्ति खुशी के महल में तैरता।
मगर अफ़सोस एक धरती मिली थी सहारे के लिए वो भी बाज़ार में बेदाम हो गयी।
निकला था कभी गाँव शहर में आशियाँ बनाने के लिये,
आज गाँव की मिट्टी से भी शहरों की बू आती है।
जाने पहचाने रास्तों से नई मंज़िल तय नहीं होती,
जीवन को आदतन ढ़ोने वाले अनजाने सड़क पे सिहर जाते हैं।
बात गर ख़ुद से बंद हो गयी है तो किसी और से बात का क्या वजूद?
संवाद शब्दों से नहीं विचारों से होती है।
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