आज मुद्दतों के बाद चंद पल फुर्सत के मिले हैं
तन्हाई का नाम देकर इसे बदनाम ना करो
मिलते तो रहे हैं अक़्सर ख़्वाबों में हमारी तकदीर
पर आज हकीकत को हमारे होने का पैग़ाम तो दो
घड़ियाँ हैं, ये भी बीत जाएगी
ठहर कर जरा चाँद का दीदार तो करलो
डर के साये में रहकर ये पँख उड़ान से कतराने लगे थे
आज सफ़र को एक ऊँची उड़ान तो दो
भागते-भागते हमने कल्पनाओं का समुंदर पी लिया है
जीवन जीने के लिए बातों को विराम तो दो
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