वो हँसता-खिलखिलाता नादान सा बच्चा
जिसे दुनिया ने सच बताकर बूढ़ा कर दिया
खेल-कूद में डूबा था भला सच का क्या करता
इस गंभीर खेल ने उसे अंधा कर दिया
भागता फिरता है ख़ुद से
कई सवाल जो उसके आँगन में डेरा डाल रखे हैं
और जब लौटता है थक-हार कर अपने घोंसले में
वो सपने वो कहानी याद आती है
जिसे बचपन के धागे में बुना गया था
खेल तो आज भी खेला जा रहा है
फ़र्क इतना है कि इस भाग-दौड़ ने उसे अकेला कर दिया
उलझने तो आज भी है पेशानी पे
फ़र्क इतना है कि आदतों ने उत्सुकता कम कर दिया
वो हँसता-खिलखिलाता नादान सा बच्चा
जिसे दुनिया ने सच बताकर बूढ़ा कर दिया
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