अर्थ-अनर्थ का कैसा खोज?
भूल जा वो है स्वप्न-लोक
ओ आशा-निराशा के गोताखोर
चंद सांसें हैं मानो थिरकता मोर
भूल जा वो है स्वप्न लोक
दिशाहीन नभ बेआकार ब्रह्म
बेबूझ है सृष्टि का श्रम
कालचक्र का चलता जोर
इंतेज़ार क्या है देखो हुई भोर
अर्थ-अनर्थ का कैसा खोज?
भूल जा वो है स्वप्न-लोक
मलंग मन की तृष्ना
कल्पनाओं का दोष
मंज़िल के झिलमिल में
संध्या हुई निजोर
सागर तट पे ढूंढ़ रहा है
अम्बर से मिलन की डोर
अर्थ-अनर्थ का कैसा खोज?
भूल जा वो है स्वप्न-लोक
भूल जा वो है स्वप्न-लोक
ओ आशा-निराशा के गोताखोर
चंद सांसें हैं मानो थिरकता मोर
भूल जा वो है स्वप्न लोक
दिशाहीन नभ बेआकार ब्रह्म
बेबूझ है सृष्टि का श्रम
कालचक्र का चलता जोर
इंतेज़ार क्या है देखो हुई भोर
अर्थ-अनर्थ का कैसा खोज?
भूल जा वो है स्वप्न-लोक
मलंग मन की तृष्ना
कल्पनाओं का दोष
मंज़िल के झिलमिल में
संध्या हुई निजोर
सागर तट पे ढूंढ़ रहा है
अम्बर से मिलन की डोर
अर्थ-अनर्थ का कैसा खोज?
भूल जा वो है स्वप्न-लोक
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