सुबह से कितनी बार फेसबुक का पेज देखता रहता हूँ,
ये किताब के पन्ने सा नहीं हैं जिसे उलट-पलट के देखूं,
हर दिन एक ही मिसरा सुनाता है!
हर दिन ख़्याल के इतने मोती बिखर जाते हैं बागवां में,
कभी कभी आसमाँ से कुछ बूंदें चुन मालायें पिरों लेता हूँ,
डर लगता है कहीं कोई इनकी बोली ना लगा डाले,
बात क़ीमत की नहीं है बस बिके हुए रिश्तों से जी घबराता है!
इस चारदिवारी में कुछ खाली पड़े सपने मेहमां से रहते हैं,
पहले तो कभी-कभी वो बादलों के उस पार मिलते थे,
आजकल वो दिन में निकले चाँद सा मुझे तकता रहता है।
मन के इस मकां में एक बच्चा रहता है,
जिसे सुलाने को मैं हक़ीकत के फ़साने गढ़ लेता हूँ,
पता न चला कि वो पेड़ कब बूढ़ा हो गया,
जिसके पास चंद लोरियों के सिवा और क्या है?
ये किताब के पन्ने सा नहीं हैं जिसे उलट-पलट के देखूं,
हर दिन एक ही मिसरा सुनाता है!
हर दिन ख़्याल के इतने मोती बिखर जाते हैं बागवां में,
कभी कभी आसमाँ से कुछ बूंदें चुन मालायें पिरों लेता हूँ,
डर लगता है कहीं कोई इनकी बोली ना लगा डाले,
बात क़ीमत की नहीं है बस बिके हुए रिश्तों से जी घबराता है!
इस चारदिवारी में कुछ खाली पड़े सपने मेहमां से रहते हैं,
पहले तो कभी-कभी वो बादलों के उस पार मिलते थे,
आजकल वो दिन में निकले चाँद सा मुझे तकता रहता है।
मन के इस मकां में एक बच्चा रहता है,
जिसे सुलाने को मैं हक़ीकत के फ़साने गढ़ लेता हूँ,
पता न चला कि वो पेड़ कब बूढ़ा हो गया,
जिसके पास चंद लोरियों के सिवा और क्या है?
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