थोड़ा सा हर टुकड़ा हूँ,
जो क़ैद भी है और आज़ाद भी,
जो सपना भी है और साकार भी।
जो उड़ते बादल सा भी है और आबाद भी,
जो शून्य भी है और अहँकार भी।
पूरा सही ना सही,
थोड़ा सा हर टुकड़ा हूँ!
भागते हुए भी ठहरा हूँ,
और ठहरे हुए भी भागता हूँ।
नींद में भी जागता हूँ,
और जागे हुए भी सोता हूँ।
अम्बर सा ऊँचा हूँ,
और समुंदर सा गहरा हूँ।
हर शाम का चिराग हूँ,
हर बुझे दीप का ख़ाक हूँ।
हवाओं में भटका हूँ,
किसी डाली पे अटका हूँ।
पूरा सही ना सही,
थोड़ा सा हर टुकड़ा हूँ!
जो क़ैद भी है और आज़ाद भी,
जो सपना भी है और साकार भी।
जो उड़ते बादल सा भी है और आबाद भी,
जो शून्य भी है और अहँकार भी।
पूरा सही ना सही,
थोड़ा सा हर टुकड़ा हूँ!
भागते हुए भी ठहरा हूँ,
और ठहरे हुए भी भागता हूँ।
नींद में भी जागता हूँ,
और जागे हुए भी सोता हूँ।
अम्बर सा ऊँचा हूँ,
और समुंदर सा गहरा हूँ।
हर शाम का चिराग हूँ,
हर बुझे दीप का ख़ाक हूँ।
हवाओं में भटका हूँ,
किसी डाली पे अटका हूँ।
पूरा सही ना सही,
थोड़ा सा हर टुकड़ा हूँ!
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