सूर्योदय एवं सूर्यास्त का होना, और इतनी बार होना कि बस हमारे जीवन की आदत सी हो जाती है. फ़िर अरुणा सबके लिये आराध्य है पर संध्या भूलने योग्य. दिन को उदय का संकेत माना जाता है, और रात्रि को अंधकार. संध्या और अरुणा की बेला दिन रात के सिमटते द्वंद् से अलग सत्य के बहुआयामी अस्तित्व के संकेत देते हैं. संध्या दिन का अंत और रात के प्रारंभ का समय है? या संध्या का अस्तित्व दिन रात के सिमटते सत्य से अलग है, बिल्कुल सम्पूर्ण! मनुष्य दुनिया को बाइनरी में देखता है. जो बाइनरी से अलग है वो अपूर्ण मान लिया जाता है. पूर्णता एक मिथ्या है. कौन सी तस्वीर पूर्ण है? कौन सा सत्य पूर्ण है? लोग कहते मिलते हैं कि सम्पूर्ण तो कोई भी नहीं है. मानो उन्होंने संपूर्णता का अनुभव किया है और उस दृष्टि से दुनिया देखने में जुटे हैं. क्या पता आप भी सत्य नहीं है. आप भी किसी के स्वप्न के हिस्सा हो सकते हैं. आपका होना एक पहेली है. आपका इसी प्रकार से और इन परिस्तिथियों में जन्म लेना भी एक पहेली है. आपका जीवन व्यवहार भी पहेली ही रहने वाला है. आप जो जानते हैं वो सतही है क्योंकि आप अपने अज्ञानता के अलावा सबकुछ जानते हैं. सूचनाओं का भंडार है आपके पास. पर वे सूचनाएं जीवन को कितना तराशते हैं. वे भी किसी बायनरी के अंग हैं. जिसके लिये मनुष्य पागल बना बैठा है. अरुणा और संध्या का सत्य हर उस द्वंद् को तोड़ता है जिसमें मनुस्य के सिमटते ज्ञान का दम्भ नज़र आता है. वर्ड्सबर्थ कहता है, "To dissect is to kill". मानव विज्ञान सतही है. कुछ बर्तन सजा रखे हैं. हर साजो-सामान को इनमें व्यवस्थित किया जाता है. ताकि उसपे सहूलियत के हिसाब से एक संकेत चस्पा किया जा सके. एक महान चीनी दार्शनिक ने कहा था कि सत्य को शब्दों में पिरोया नहीं जा सकता. सत्य महसूस किया जा सकता है. सत्य जिया जा सकता है. सत्य का हर वर्णन मात्र एक व्याख्या है (Nietzsche). व्याख्या दृष्टि और मानस के पूर्वाग्रहों से निर्मित होता है (Immanuel Kant, Critique of Pure Reason). कांट की माने तो ज्ञान की हर धारा मानवीय है. वेदों में जिसे ऋत कहा गया है, जो सनातन है, टाइम स्पेस के सिंथेटिक अपरिओरि निर्णय से दूर, जो बदलता नहीं. जिसे जीना-मरना नहीं पड़ता है. सनातन धर्म में जिसे मोक्ष समझा गया है. वो सत्य मानवीय सत्य के वैज्ञानिक अवलोकन में निर्रथक मालूम पड़ता है.
विज्ञान के विकास का इतिहास इस बात की ओर इंगित करता है कि मेटाफिजिक्स विज्ञान के जन्म और विकास का महत्वपूर्ण स्त्रोत है. तर्कशास्त्र एवं गणित से जनित रेशनलिस्ट परम्परा ने मानव को कल्पना के धार को तेज किया. अनुभवमुलक परम्परा ने तथ्यपरक बनाने की चेस्टा की. और इस प्रकार मेटाफिजिक्स का दायरा घटता गया. स्टीवन हॉकिंग्स ने अपने देहावसान से पहले ये घोषणा की थी कि एक दिन ऐसा आएगा जब दुनिया के सारे रहस्य को विज्ञान सुलझालेगा और मेटाफिजिक्स के गहरे ब्रह्मण्ड से मनुस्य को मुक्ति मिलेगी. उनका कथन अतिविश्वास का प्रतीक मालूम होता है. विज्ञान का सार उसके सिमटाव में है. उसके प्रक्रिया में है. जो पहचान और वर्गीकरण के नियम को स्वीकार करता है. जो वेरीफिकेशन और फॉलसिफिकेशन के दायरों से निर्मित होता है. फ्रेंच दार्शनिक मिशेल फूको ने ज्ञान विज्ञान को प्रोडक्शन के संदर्भ में देखा है. उनकी पुस्तक Order of Things इस बात पे प्रकाश डालती है. वो ज्ञान के निर्माण की संभावनाओं को मानव-अवचेतन में तलाशते नज़र आते हैं. जिसे उन्होंनें episteme कहा है. विज्ञान के दर्पण को गहरा होना होगा अगर उसे प्रकृति को समझना है. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था, "Through our sense of truth we realise law in creation, and through our sense of beauty we realise harmony in the universe".
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