होता क्या है बिना अर्थ के?
एक पत्थर में भी भगवान की मूरत होती है
अनर्थ को साजे-दिल बनाकर गर निकलोगे बाज़ार में
निराशा और अंधेरा के सिवा और क्या मिलेगा तुम्हें?
काँटों के ताज से ही कभी कोई सिकंदर बनता है
कभी कोई गुलाब के फूल खिलते हैं
कभी कोई तारा अपने भस्म से जीवन को रौशन करता है
जिस मन से तुम हज़ारों बार मंज़िल से लौट आते हो
उसी मन से कोई बुद्ध, न्यूटन, आइंस्टीन पैदा होता है
जिस चित्त से तुम कमियों को ढूढ़ते रहते हो
उसी चित्त से कोई हेलन केलर, हॉकिंग्स पैदा लेता है
दरिद्रता कहीं नहीं है मन के सिवा
जहाँ जीवन है वहाँ सब कुछ है
जो आशा से भरा है वो ज़िन्दा है
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