ज़िन्दगी के हज़ारों पन्नों के बीच भूल गए हम वो एक मात्र सत्य कि हम कोई और नहीं बस जीवन हैं।
वही जीवन जो नदियों के धाराओं में बहता है;
वही जीवन जो फूलों में खुशबुएँ बिखेरता है;
वही जीवन जो पेड़ के हर डाल पे बसता है;
वही जीवन जो चन्द्रमा, सूर्य, और तारों में बसता है; ब्रह्मण्ड का सत्य कोई रहस्य नहीं है,
सब कुछ आँखों के समीप है, और ह्रदय में धारण किये हुए है।
सारा अस्तित्व प्रेम और आकांक्षाओं से जन्मी व्यवस्था है, जिसके सच के लिए हज़ार पन्नों की नहीं, बस एक खुले हॄदय की आवश्यकता है, और वो हृदय किसी बाज़ार में नहीं मिलता, हमारे कण-कण में बसता है, हाँ ये और बात है कि हर एक पन्ने को उलटते पलटते वक़्त हम अस्तित्व से अलग ख़ुद की ही एक पहचान बना लेते हैं, हम अपने कल्पनाओं के कैदी गर अस्तित्व को एक विषय-वस्तु के रूप में ना देखें तो यहाँ पे बिखरा हर एक धूल कण भी ब्रह्म है, जीवंत है, ख़ुद का ही विस्तार है। ख़ुद और ख़ुदा भला कैसे अलग हो सकते हैं? नर और नारायण से मिलकर ही प्रकृति है, अस्तित्व है!
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