बताने की ज़िद नहीं है,
भला कोई सुनने वाला ही नहीं रहा।
दिखाने की कोशिश भी नहीं है,
भला कोई देखने वाला ही नहीं रहा।
कोई सुने या ना सुने, हम सब बताये जा रहे हैं ।
कोई देखे या ना देखे, हम सब दिखाये जा रहे हैं।।
हमारा मिज़ाज कंज्यूमर हो गया है,
एक जगह टिकता ही नहीं।
अब इतना ठहराव कहाँ कि रुक कर निहार लें, खेत-खलिहान और बाग-बग़ीचे।
कहीं पहुँचना हो या ना हो,
हम सब भगाये जा रहे हैं।
कोई स्वागत को मिले या ना मिले,
रिश्ते बढ़ाये जा रहे हैं।
कोई सुने या ना सुने, हम सब बताये जा रहे हैं ।
कोई देखे या ना देखे, हम सब दिखाये जा रहे हैं।।
सूचनाओं का भवँर जाल ऐसा कि पड़ोसी भूखा सो गया,
पता ना चला,
पर दुनिया का हाल गाये जा रहे हैं।
सुबह से शाम तक आँखें गड़ी है टिक-टॉक पे,
पर रिश्तों का दुखड़ा बिछाये जा रहे हैं।
कोई सुने या ना सुने, हम सब बताये जा रहे हैं।
कोई देखे या ना देखे, हम सब दिखाये जा रहे हैं।।
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