रूप, स्वरूप के आंनद में जन्मा,
जीवन क्या है? अभिलाषा!
आईने में कहाँ ख़ुद को देखा?
दिखा बदलती अभिलाषा।
जीना कैसा समर्पण है?
मिला ना कोई परिभाषा।
भूत-भविष्य के दामन में,
जागती-सोती एक आशा।
रूप, स्वरूप के आंनद में जन्मा,
जीवन क्या है? अभिलाषा!
अंक-गणित के यंत्र से,
जीवन रचित ये कैसी भाषा?
कल्पवृक्ष के प्राण में,
तैरती रहती जिज्ञासा।
रूप, स्वरूप के आंनद में जन्मा,
जीवन क्या है? अभिलाषा!
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